एएमयू और जामिया मिलिया इस्लामिया यूनिवर्सिटी पर फैसले का बड़ा प्रभाव
सुप्रीम कोर्ट ने अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (एएमयू) के अल्पसंख्यक दर्जे पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है। यह मामला इलाहाबाद हाईकोर्ट के 2006 के फैसले से उत्पन्न हुआ था, जिसमें कहा गया था कि एएमयू अल्पसंख्यक संस्थान नहीं है ¹।
चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली सात न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने इस मुद्दे पर आठ दिनों तक दोनों पक्षों की दलीलें सुनीं। पीठ ने यह भी कहा कि अल्पसंख्यक दर्जे का निर्णय वर्तमान मानकों के आधार पर किया जाना चाहिए, न कि उस स्थिति के आधार पर जो भारत के संविधान के लागू होने से पहले मौजूद थी ²।
इस मामले में उठने वाले मुद्दों में से एक यह है कि क्या यूनिवर्सिटी, जो क़ानून (एएमयू एक्ट, 1920) द्वारा स्थापित और शासित है, अल्पसंख्यक दर्जे का दावा कर सकता है। इसके अलावा, 1967 के फैसले की शुद्धता और एएमयू एक्ट में 1981 का संशोधन भी संदर्भ में आया है ¹।
एएमयू और एएमयू ओल्ड बॉयज़ एसोसिएशन का प्रतिनिधित्व करते हुए सीनियर एडवोकेट डॉ. राजीव धवन और कपिल सिब्बल ने दलीलें पेश कीं। भारत संघ का प्रतिनिधित्व अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी और सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने किया ¹।