एएमयू और जामिया मिलिया इस्लामिया यूनिवर्सिटी पर फैसले का बड़ा प्रभाव
सुप्रीम कोर्ट ने अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (एएमयू) के अल्पसंख्यक दर्जे पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है। यह मामला इलाहाबाद हाईकोर्ट के 2006 के फैसले से उत्पन्न हुआ था, जिसमें कहा गया था कि एएमयू अल्पसंख्यक संस्थान नहीं है ¹।
चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली सात न्यायाधीशों की संविधान पीठ इस मुद्दे पर अपना फैसला सुनाएगी। संविधान पीठ में जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस जेबी पार्डीवाला, जस्टिस दीपांकर दत्ता, जस्टिस मनोज मिश्रा और जस्टिस एससी शर्मा भी शामिल हैं ¹।
एएमयू को संविधान के अनुच्छेद 30 के तहत अल्पसंख्यक का दर्जा प्राप्त है, जो धार्मिक और भाषायी अल्पसंख्यकों को शैक्षणिक संस्थान स्थापित करने और उनके प्रशासन का अधिकार देता है। इस फैसले का असर जामिया मिलिया इस्लामिया यूनिवर्सिटी पर भी पड़ेगा ¹।
मामले में उठने वाले मुद्दों में से एक यह है कि क्या यूनिवर्सिटी, जो क़ानून (एएमयू एक्ट, 1920) द्वारा स्थापित और शासित है, अल्पसंख्यक दर्जे का दावा कर सकता है। एस अज़ीज़ बाशा बनाम भारत संघ (5-न्यायाधीश पीठ) में सुप्रीम कोर्ट के 1967 के फैसले की शुद्धता, जिसने एएमयू की अल्पसंख्यक स्थिति खारिज कर दी और एएमयू एक्ट में 1981 का संशोधन, जिसने यूनिवर्सिटी को अल्पसंख्यक दर्जा दिया, संदर्भ में भी आया ¹।