लेकिन जनसंख्या एवं आय में वृद्धि के साथ-साथ मांग एवं आपूर्ति के बीच का अंतर लगातार बढ़ता जा रहा है। भारत आज भी घरेलू जरूरतों का सिर्फ 43 प्रतिशत ही खाद्य तेल का उत्पादन कर पा रहा है।
खाद्य तेलों में सबसे ज्यादा सरसों तेल को पसंद किया जाता है। लेकिन ज्यादा तेल का इस्तेमाल सेहत के लिए नुकसानदायक है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मन की बात में खाद्य तेलों में 10 फीसदी कटौती का आग्रह किया था, लेकिन इसी संदर्भ में तिलहन में निर्भरता के प्रयासों को भी चर्चा में ला दिया है।
दशकों के प्रयासों के बावजूद भारत आज भी घरेलू जरूरतों का सिर्फ 43 प्रतिशत ही खाद्य तेल का उत्पादन कर पा रहा है। शेष 57 प्रतिशत के लिए पूरी तरह आयात पर निर्भर है। घरेलू मांग की पूर्ति के लिए प्रतिवर्ष लगभग डेढ़ सौ लाख टन से अधिक खाद्य तेल का आयात किया जा रहा है, जो सरकार के लिए दाल के बाद सबसे बड़ी चिंता की बात है।
खाद्य तेल के मामले में होगी आत्मनिर्भरता यही कारण है कि केंद्र सरकार ने दाल के साथ-साथ खाद्य तेल के मामले में भी आत्मनिर्भरता का लक्ष्य तय किया है। प्रयास भी किया जा रहा है। राष्ट्रीय खाद्य तेल मिशन पर काम शुरू हो चुका है। वर्ष 2030-31 तक जरूरत का लगभग 72 प्रतिशत तेलहन का उत्पादन करना है। इसके तहत तिलहन का रकबा बढ़ाया जा रहा है।