सीजेआई संजीव खन्ना, जस्टिस पीवी संजय कुमार और जस्टिस केवी विश्वनाथन की बेंच इस मामले में दायर 70 याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है।
वक्फ कानून को रद्द करने के पक्ष में दलील देते हुए वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने कहा कि इस्लाम में उत्तराधिकारी मृत्यु के बाद मिलता है। सरकार वक्फ कानून के जरिए पहले ही हस्तक्षेप कर रही है। धारा 3(सी) के तहत वक्फ के रूप में पहचानी गई या घोषित की गई सरकारी संपत्ति को अधिनियम के लागू होने के बाद वक्फ नहीं माना जाएगा।
सीजेआई ने कहा कि अनुच्छेद 26 जो कि धर्मनिरपेक्ष का हवाला देता है जो सभी समुदायों पर लागू होता है। हिंदू में भी राज्य ने कानून बनाया है। संसद ने मुसलमानों के लिए भी कानून बनाया है। इस पर सिब्बल ने कहा कि धारा 3(ए)(2)- वक्फ-अल-औलाद के गठन से महिलाओं को विरासत से वंचित नहीं किया जा सकता। इस बारे में कहने वाला राज्य कौन होता है?
जस्टिस केवी विश्वनाथन ने कहा कि आपस में मत उलझिए। संपत्तियां धर्मनिरपेक्ष हो सकती है। केवल संपत्ति का प्रशासन ही इसके लिए जिम्मेदार हो सकता है। बार-बार यह मत कहिए कि यह आवश्यक धार्मिक प्रथा है।
नए वक्फ कानून का हवाला देते हुए सिब्बल ने कहा कि धारा 9 पर नजर डालिए। इसमें कुल 22 सदस्य हैं जिसमें 10 मुसलमान होंगे। इस पर सीजेआई ने कहा कि दूसरे प्रावधान को देखिए। क्या इसका मतलब यह है कि पूर्व अधिकारी को छोड़कर केवल दो सदस्य ही मुस्लिम होंगे। सुनवाई अभी जारी है।
वक्फ संशोधित कानून में कई प्रावधान हैं जो वक्फ बोर्ड की शक्तियों और कार्यों को बदलते हैं। इस कानून के तहत वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन और प्रशासन में सरकार की भूमिका बढ़ाई गई है। याचिकाकर्ताओं का कहना है कि यह कानून वक्फ बोर्ड की स्वायत्तता का उल्लंघन करता है और मुस्लिम समुदाय के धार्मिक अधिकारों को प्रभावित करता है।
अदालत ने मामले की सुनवाई जारी रखते हुए सभी पक्षों से विस्तृत दलीलें मांगी हैं। अब इस मामले की अगली सुनवाई तक सभी पक्षों को अपनी दलीलें पेश करनी होंगी। इसके बाद अदालत इस मामले में अपना फैसला सुनाएगी।