नशे की लत से निकलकर बने सैकड़ों युवाओं की प्रेरणा, खोल रखा है अपना नशा मुक्ति केंद्र
पूर्णिया। कहते हैं कि यदि इंसान ठान ले तो वह किसी भी गहराई से निकलकर शिखर तक पहुंच सकता है। पूर्णिया के एक युवक ने इसी बात को सच कर दिखाया। हम बात कर रहे हैं अभिषेक आनंद की, जिन्होंने महज 16 वर्ष की उम्र में नशे की लत के कारण अपनी जिंदगी लगभग बर्बाद कर दी थी, लेकिन आज वही युवक समाज में नशा मुक्ति की अलख जगा रहे हैं।
अभिषेक आनंद का जन्म 15 मार्च 1998 को अररिया जिला के कुस्साकांटा गांव में एक सामान्य मध्यमवर्गीय परिवार में हुआ। पिता कृपानाथ झा एक किसान हैं और माता कविता झा एक साधारण गृहिणी। अभिषेक का बचपन सामान्य था, लेकिन किशोरावस्था में गलत संगत और वातावरण की वजह से उन्होंने नशे की दुनिया में कदम रख दिया। अभिषेक ने खुद बताया कि जब वे 16 साल के थे, तभी उन्हें शराब, सिगरेट और धीरे-धीरे स्मैक की लत लग गई थी। शुरुआत में यह सब उन्हें “मस्ती” लगती थी, लेकिन जल्द ही यह उनकी आदत बन गई।
शिक्षा के साथ बर्बादी की शुरुआत
अभिषेक ने 10वीं और 12वीं तक की पढ़ाई पूर्णिया जिले के इंडियन पब्लिक स्कूल, गुलाबबाग से पूरी की। इसके बाद उन्हें उच्च शिक्षा के लिए दिल्ली के एक इंजीनियरिंग कॉलेज में नामांकन मिला। लेकिन दिल्ली की चकाचौंध और नए माहौल ने अभिषेक की आदतों को और बिगाड़ दिया। नए दोस्त, नई संगत और फिर धीरे-धीरे नशे की खतरनाक लत – अभिषेक स्मैक जैसे खतरनाक ड्रग के गिरफ्त में आ गए।
स्मैक के नशे में उनका दिन-रात बर्बाद हो गया। अभिषेक खुद कहते हैं कि उन्हें सुबह-शाम नशे के लिए पैसों की जरूरत होती थी। एक मध्यम वर्गीय किसान परिवार के लिए यह स्थिति बेहद कठिन हो गई। माता-पिता मानसिक तनाव में रहने लगे। बेटे को इस हालत में देखना उनके लिए किसी यातना से कम नहीं था।
परिवार की पहल और जीवन का नया मोड़
अभिषेक की बिगड़ती हालत को देखकर उनके जीजा और परिवार ने मिलकर उन्हें एक नशा मुक्ति केंद्र में भर्ती कराया। यह फैसला अभिषेक के जीवन का सबसे बड़ा मोड़ साबित हुआ। उन्होंने नशा मुक्ति केंद्र में महीनों इलाज करवाया और धीरे-धीरे नशे से बाहर निकलने में सफल रहे।
इलाज के बाद अभिषेक ने निर्णय लिया कि अब वे सिर्फ अपने लिए नहीं, बल्कि समाज के उन युवाओं के लिए काम करेंगे जो नशे की गिरफ्त में हैं और बाहर निकलना चाहते हैं।
आज अभिषेक आनंद पूर्णिया के लाइन बाजार स्थित काट पुल के पास “साजदा फाउंडेशन” नाम से एक नशा मुक्ति केंद्र चला रहे हैं। यह केंद्र न सिर्फ नशा छुड़ाने में मदद करता है, बल्कि मानसिक और भावनात्मक तौर पर युवाओं को फिर से सामान्य जीवन जीने के लिए प्रेरित करता है।
अभिषेक का कहना है कि अब तक वे 500 से अधिक नशे के आदी युवाओं को स्वस्थ और नशा मुक्त जीवन की ओर वापस ला चुके हैं। उन्होंने बताया कि हर मरीज की कहानी अलग होती है, लेकिन इलाज और प्यार से उन्हें सही राह पर लाया जा सकता है।
आज अभिषेक आनंद खुद मिसाल बन चुके हैं। जिस नशे ने उन्हें बर्बाद कर दिया था, उसी नशे के खिलाफ लड़ाई लड़ते हुए उन्होंने खुद को भी बदला और समाज को भी दिशा दिखाई। उनकी कहानी बताती है कि कोई भी गिरावट आखिरी नहीं होती, अगर इरादा मजबूत हो।
अभिषेक आनंद ने युवाओं और उनके अभिभावकों से अपील की है कि नशा एक धीमा जहर है, जो न केवल शरीर बल्कि पूरे परिवार को तोड़ देता है। अगर घर का कोई सदस्य ऐसी स्थिति में है तो उसे छुपाएं नहीं, बल्कि इलाज के लिए आगे आएं। यह बीमारी है, अपराध नहीं।
निष्कर्षतः, अभिषेक आनंद की जिंदगी इस बात का जीता-जागता उदाहरण है कि अगर इंसान चाहे तो किसी भी अंधेरे से निकलकर रोशनी की ओर बढ़ सकता है। आज वे अपने अनुभव और संघर्षों के जरिए नशे में फंसे सैकड़ों युवाओं के लिए उम्मीद की किरण बने हुए हैं। समाज को ऐसे ही और लोगों की जरूरत है, जो खुद बदलें और दूसरों को बदलने की प्रेरणा दें।
साजदा फाउंडेशन, लाइन बाजार, काट पुल के पास, पूर्णिया, बिहार
(नशा से मुक्ति के लिए संपर्क करें – गोपनीयता की गारंटी)