भागलपुर के तिरासी और मदरौनी गांव के दो शहीद रतन सिंह और प्रभाकर सिंह की कहानियां आज भी लोगों के दिलों में जिंदा हैं।
रतन सिंह के बेटे रूपेश हर सुबह अपने पिता की तस्वीर के आगे दीपक जलाते हैं, जबकि प्रभाकर के भाई दिवाकर उनकी वर्दी और तस्वीरों को संदूक में सहेज कर रखते हैं।
तिरासी गांव में शहीद रतन सिंह की यादें आज भी जिंदा हैं। उनके बेटे रूपेश सिंह की आंखों में आज भी पिता की वह अंतिम झलक तैरती है। रूपेश हर सुबह पिता की तस्वीर के आगे दीपक जलाते हैं और उनके पिता की हाथ की लिखाई वाली किताब पढ़ते हैं। जिसमें लिखा है, “देश से बड़ा कुछ नहीं होता।” यह लाइन उन्हें जीने की ताकत देती है और उन्हें अपने पिता की शहादत का सम्मान करने के लिए प्रेरित करती है।
मदरौनी गांव अब किसी नक्शे पर नहीं है, लेकिन इस गांव ने भी शहीद प्रभाकर सिंह नाम एक बहादुर बेटा दिया था। उनके भाई दिवाकर आज पूर्णिया में एक किराए के घर में रहते हैं और उनके पास एक संदूक है, जिसमें एक वर्दी, एक बैच और एक पुराना फोटो एल्बम रखा है। जब दिवाकर उस एल्बम को पलटते हैं, तो एक तस्वीर पर उनकी उंगली रुक जाती है। प्रभाकर की मुस्कुराती तस्वीर। वे कहते हैं कि यह आखिरी बार हंसे थे। फिर खबर आई कि कारगिल में वो गोली से नहीं, हौसले से लड़े और गिर पड़े।
शहीदों की यादें कभी नहीं मिटतीं। सरकारें बदलती हैं, घोषणाएं आती हैं और भूल जाती हैं, लेकिन किसी बेटे की आंखों में बसे पिता, किसी मां की थरथराती उंगलियों से छूती तस्वीर और किसी संदूक में बंद एक वर्दी, ये कभी पुराने नहीं होते। रतन और प्रभाकर चले गए, लेकिन वे अपने गांव की मिट्टी, अपनी मां की सांसों, और अपने बेटे की आंखों में आज भी जिंदा हैं।
शहीद रतन सिंह और प्रभाकर सिंह की कहानियां आज भी जिंदा हैं और उनके परिवार के लिए एक प्रेरणा का स्रोत हैं। उनकी शहादत को कभी भुलाया नहीं जा सकता है और उनके परिवार को हमेशा सम्मान और समर्थन मिलेगा।